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जून, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस

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  संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस ⬧ प्रतिवर्ष 23 जून को सम्पूर्ण विश्व में संयुक्त राष्ट्र द्वारा लोक सेवाओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में ‘संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस’ का आयोजन किया जाता है। ⬧ यह दिवस लोक सेवकों के कार्य को मान्यता देते हुए समाज के विकास में उनके योगदान पर ज़ोर देता है और युवाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए प्रेरित करता है।  ⬧ 20 दिसंबर, 2002 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 23 जून को संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस के रूप में घोषित किया था। ⬧ इस दिवस के संबंध में जागरूकता और लोक सेवा के महत्त्व को बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2003 में ‘संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार’ (UNPSA) कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जिसे वर्ष 2016 में सतत् विकास के लिए वर्ष 2030 एजेंडा के अनुसार अपडेट किया गया था। ⬧ ‘संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार’ कार्यक्रम सार्वजनिक संस्थाओं की नवीन उपलब्धियों और सेवाओं को मान्यता देकर लोक सेवाओं में नवाचार एवं गुणवत्ता को बढ़ावा देता है तथा उन्हें पुरस्कृत करता है, जो सतत् विकास के पक्ष में दुनिया भर के देशों में अधिक क

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस

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  अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस ⬧ प्रतिवर्ष 23 जून को सैनिक गतिविधियों में खेल एवं स्वास्थ्य के महत्त्व को बढ़ावा देने के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस’ का आयोजन किया जाता है। ⬧ यह दिवस 1894 ई. में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की स्थापना को चिह्नित करता है। ⬧ इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य आम लोगों के बीच खेलों को प्रोत्साहित करना और खेल को जीवन का अभिन्न अंग बनाने का संदेश प्रसारित करना है। ⬧ आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत ओलंपिया (ग्रीस) में आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईस्वी तक आयोजित प्राचीन ओलंपिक खेलों से प्रेरित है। ⬧ यह ग्रीस के ओलंपिया में ज़ीउस (Zeus) (ग्रीक धर्म के सर्वोच्च देवता) के सम्मान में आयोजित किया जाता था। ⬧ बेरोन पियरे दी कोबर्टिन ने 1894 ई. में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) की स्थापना की और ओलंपिक खेलों की नींव रखी। ⬧ यह एक गैर-लाभकारी स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो खेल के माध्यम से एक बेहतर विश्व के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। ⬧ यह ओलंपिक खेलों के नियमित आयोजन को सुनिश्चित करता है, सभी संबद्ध सदस्य संगठनों का समर्थन करता है और उचित तरीकों स

शास्त्रों के अनुसार पूजा अर्चना में वर्जित कार्य

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शास्त्रों के अनुसार पूजा अर्चना में वर्जित कार्य  *१) श्रीगणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं* *२) देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं* *३) शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं* *४) श्रीविष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं* *५) दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें* *६) मंदिर में तीन गणेशजी मूर्ति न रखें* *७) तुलसी पत्र चबाकर न खाएं* *८) द्वार पर जूते चप्पल उल्टे न रखें* *९) दर्शन करके बापस लौटते समय घंटा न बजाएं* *१०) एक हाथ से आरती नहीं लेना चाहिए* *११) ब्राह्मण को बिना आसन बिठाना नहीं चाहिए* *१२) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम वर्जित है* *१३) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से प्रश्न नहीं पूछना चाहिए* *१४) घर में पूजा करने अंगूठे से बड़ा शिवलिंग न रखें* *१५) तुलसी पेड़ में शिवलिंग किसी भी स्थान पर न हो* *१६) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श नहीं करना है* *१७) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल नहीं फोडना है* *१८) रजस्वला स्त्री का मंदिर प्रवेश वर्जित है* *१९) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श न करें* *२०) शिव जी की पूरी परिक्रमा नहीं किया जाता* *२१) शिव लिंग से बहते जल को लांघना नहीं चाहिए* *२२) एक हाथ से प्रणाम न करें* *२३) दू

श्री गणेश घोष

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श्री गणेश घोष ▪️गणेश घोष का जन्म 22 जून, 1900 को ब्रिटिशकालीन भारत के बंगाल में हुआ था।  ▪️घोष विद्यार्थी जीवन में ही स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हो गए थे।  ▪️वर्ष 1922 की गया (बिहार) कांग्रेस में जब बहिष्कार का प्रस्ताव स्वीकार हो गया तो गणेश घोष और उनके साथी अनंत सिंह ने नगर का सबसे बड़ा विद्यालय बंद करा दिया था।  ▪️गाँधीजी के असहयोग आंदोलन स्थगित करने के पश्चात् गणेश ने कलकत्ता के जादवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया।  ▪️वर्ष 1923 में उन्हें 'मानिकतल्ला बम कांड' के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया तथा कोई प्रमाण न मिलने के कारण उन्हें सज़ा तो नहीं हुई, पर सरकार ने 4 वर्ष के लिए नज़रबंद कर दिया था। ▪️वर्ष 1928 में वे बाहर निकले और कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया।  ▪️घोष प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन के संपर्क में आए और शस्त्र बल से अंग्रेज़ों की सत्ता समाप्त करके चटगाँव में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की तैयारी करने लगे। ▪️पूरी तैयारी के बाद इन क्रांतिकारियों ने वहाँ के शस्त्रागार और टेलीफोन, तार आदि अन्य महत्त्व के स्थानों पर एक साथ आक्रमण कर दिया।  ▪️का

विश्व संगीत दिवस

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  विश्व संगीत दिवस ❖ प्रतिवर्ष 21 जून को ‘विश्व संगीत दिवस’ का आयोजन किया जाता है।  ❖ इसका मुख्य उद्देश्य संगीत के माध्यम से शांति और सद्भावना को बढ़ावा देना है।  ❖ इस दिवस के आयोजन की कल्पना सर्वप्रथम वर्ष 1981 में फ्रांस के तत्कालीन संस्कृति मंत्री द्वारा की गई थी।  ❖ ‘विश्व संगीत दिवस’ की शुरुआत में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले फ्रांस के तत्कालीन संस्कृति मंत्री मौरिस फ्लेरेट स्वयं एक प्रसिद्ध संगीतकार, पत्रकार और रेडियो निर्माता थे।  ❖ इस दिवस के अवसर पर भारत समेत विश्व के तमाम देशों में जगह-जगह संगीत प्रतियोगिताओं और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। ❖ वर्तमान समय में संगीत एक ऐसा सशक्त माध्यम बन गया है, जिसका प्रयोग वैज्ञानिकों द्वारा व्यक्ति को मानसिक रोगों व व्याधियों से मुक्ति प्रदान करने के लिए भी किया जा रहा है। ❖ कई अध्ययनों और विशेषज्ञों के मुताबिक, संगीत तनाव को कम करने और बेहतर नींद प्रदान करने में भी मददगार साबित हो सकता है। Source utkarsh Classes 

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

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  अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ❖  प्रतिवर्ष 21 जून को ‘ग्रीष्मकालीन संक्रांति’ (Summer Solstice) के साथ विश्व स्तर पर ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ (International Yoga Day) का आयोजन किया जाता है। ❖  विश्व स्तर पर सर्वप्रथम वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किया गया था। ❖  11 दिसंबर, 2014 को ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ के 69वें सत्र के दौरान एक प्रस्ताव पारित करके 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस/विश्व योग दिवस के रूप में मनाए जाने के लिए मान्यता दी गई थी। ❖  संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व में योग को पहचान दिलाने एवं योग की महत्ता से विश्व को अवगत कराते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस सत्र में विश्व योग दिवस घोषित किए जाने से संबंधित प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। ❖  प्रधानमंत्री की इस अपील के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा के 123 सदस्यों की इस बैठक में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को रखा गया जिसमें 177 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। ❖  इस दिवस के लिए वर्ष 20

डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय

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 डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ❖ भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी, 1931 को हुआ था।  ❖ सुभाष मुखोपाध्याय की शिक्षा कलकत्ता और उसके बाद एडिनबर्ग में हुई थी।  ❖ इनकी विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक के जरिए भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म 3 अक्टूबर, 1978 को कलकत्ता में हुआ था। ❖ डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय जब स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री लेकर कलकत्ता लौटे, तब तक टेस्ट ट्यूब बेबी पर विश्वभर में चर्चा तेज हो चुकी थी, लेकिन कोई सफल प्रयोग होना अभी बाकी था।  ❖ 25 जुलाई, 1978 को चिकित्सक पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स ने टेस्ट ट्यूब के जरिए बच्चे को जन्म देने की घोषणा कर इतिहास रच दिया।  ❖ 25 जुलाई की घोषणा के महज 67 दिनों के भीतर 3 अक्टूबर, 1978 को डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने भी एक घोषणा की तथा उन्होंने दुनिया को बताया कि टेस्ट ट्यूब के जरिए बच्चे को जन्म देने का उन्होंने भी सफल प्रयोग कर लिया है। ❖ टेस्ट ट्यूब के जरिए जन्मीं बच्ची को नाम मिला ‘दुर्गा’। इस नाम के पीछे की कहानी यह है कि 3 अक्टूबर, 1978 को दुर्गा पूजा का पहला दिन

श्री सुदर्शन अग्रवाल

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 श्री सुदर्शन अग्रवाल ❖  सुदर्शन अग्रवाल का जन्म 19 जून, 1931 को पंजाब के लुधियाना में हुआ। ❖  इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से वर्ष 1953 में विधि में डिग्री प्राप्त की। ❖  अग्रवाल जी ने वर्ष 1956 में पंजाब की न्यायिक सेवा का प्रभार ग्रहण किया तथा वर्ष 1971 तक न्यायिक अधिकारी का प्रभार संभाला। ❖  वर्ष 1971 में वे राज्यसभा सचिवालय में शामिल हुए तथा विभिन्न प्रकार के कार्यों का सम्पादन किया। ❖  वर्ष 1981 में वह राज्यसभा के महासचिव बने तथा 12 वर्षों से अधिक समय तक कार्यभार संभाला। ❖  वर्ष 1986 में इस पद पर रहते हुए, उन्हें भारत सरकार के कैबिनेट सचिव के पद से नवाजा गया। ❖  सुदर्शन अग्रवाल जनवरी, 2003 में उत्तराखंड के राज्यपाल नियुक्त हुए थे। ❖  सुदर्शन अग्रवाल 03 जुलाई, 2004 से 07 जुलाई, 2004 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे।  ❖  राष्ट्रपति भवन की अधिसूचना पर इन्हें 19 अगस्त, 2007 को सिक्किम का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया। ❖  उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति की हैसियत से भी सुदर्शन अग्रवाल तीन वर्ष तक 'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' के सदस्य रह चुके हैं। ❖  इन्होंने कई वर्षों तक रोटरी फा

विश्व क्षयरोग दिवस

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24 मार्च - विश्व क्षयरोग दिवस इस दिन का महत्व और इतिहास क्या है ? • विश्व क्षय रोग दिवस"वर्ष 1982 में क्षय रोग बेसिलस की खोज करने वाले डॉ. रॉबर्ट कोच के जन्म दिवस पर 24 मार्च को मनाया जाता है। • इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व में क्षय रोग/टीबी/तपेदिक के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।  • यह दिवस रोग को ख़त्‍म करने हेतु समाधान ढूँढ़ने पर जोर देता है।  • इस दिवस का महत्त्‍व टीबी को पूरी तरह से ख़त्‍म करने के वैश्विक प्रयासों में तेजी और उसके चरणों में बदलाव करना है।

हरिभाऊ उपाध्याय

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                   हरिभाऊ उपाध्याय ▪️ ‘दा साहब’ के नाम से प्रसिद्ध हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म 24 मार्च, 1892 को मध्य प्रदेश के वर्तमान उज्जैन जिले के भौंरासा में गाँव में हुआ था।  ▪️ भौंरासा में गाँव प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वर्ष 1911 में वे उच्च शिक्षा के लिए वाराणसी गए और वहाँ 'औदुम्बर' नामक मासिक पत्र का संपादन किया। ▪️ उपाध्याय राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे।  ▪️ हरिभाऊ ने अजमेर में 'सस्ता साहित्य मण्डल' की स्थापना की। वर्ष 1927 में हरिभाऊ ने अजमेर से 'त्यागभूमि' हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया तथा जमनालाल बजाज की प्रेरणा से इसी वर्ष हटूण्डी में 'गाँधी आश्रम' की स्थापना की।  ▪️ उन्होंने आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे लंबे अहिंसक बिजौलिया किसान आंदोलन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।  ▪️ उन्होंने मेवाड़ के महाराणा और ब्रिटिश रेज़िडेन्ट को अदालत में किसान की माँगों को लेकर उचित प्रकार से समझाने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली।  ▪️ उपाध्याय ने वर्ष 1916 से वर्ष 1919 के प्रारम्भ तक महावीर प्रस

चित्तरंजन दास

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  चित्तरंजन दास एनेछिले साथे करे मृत्युहीन प्रान। मरने ताहाय तुमी करे गेले दान।। ● चित्तरंजन दास का जन्‍म 5 नवंबर, 1870 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था।  ● उनके पिता भुबन मोहन दास कोलकाता उच्‍च न्‍यायालय में एक जाने माने वकील थे।  ● ब्रह्म समाज के एक कट्टर समर्थक देशबंधु अपनी तीक्ष्‍ण बुद्ध‍ि और पत्रकारीय दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे। चित्तरंजन दास कोलकाता उच्च न्यायालय के विख्यात वक़ील थे, जिन्होंने अलीपुर बम केस में अरविन्द घोष की पैरवी की थी। ● चित्तरंजन दास ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर गाँधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए।  ● उन्होंने विलासी जीवन व्यतीत करना छोड़ दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार करते हुए सारे देश का भ्रमण किया।  ● वे कोलकाता के नगर प्रमुख निर्वाचित हुए। उनके साथ सुभाषचन्द्र बोस कोलकाता निगम के मुख्य कार्याधिकारी नियुक्त हुए। ● चित्तरंजन दास वर्ष 1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे।  ● उन्होंने मोतीलाल नेहरू और एन. सी. केलकर के सहयोग से 'स्वराज्य पार्टी' की स्थापना की

सी. एस. वेंकटाचारी

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 सी. एस. वेंकटाचारी ● वेंकटाचारी का जन्म 11 जुलाई, 1899 को कोलार (कर्नाटक) में हुआ। ● वेंकटाचारी की शिक्षा महाराजा सेंट्रल कॉलेज, बैंगलौर (बेंगलुरू) में हुई। ● उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से वर्ष 1920 में रसायन विज्ञान में स्नातक किया। ● वर्ष 1922 में वे भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुए। ● वेंकटाचारी को वर्ष 1941 के बर्थडे ऑनर्स में ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (OBE) का अधिकारी नियुक्त किया गया। ● स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1947 में वे भारत की संविधान सभा के लिए चुने गए। ● हीरालाल शास्त्री के इस्तीफे के बाद उन्होंने 6 जनवरी, 1951 से 25 अप्रैल, 1951 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद संभाला। ● वर्ष 1951 में वेंकटाचारी भारत सरकार के राज्य मंत्रालय के सचिव बने। ● वर्ष 1955 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का सचिव नियुक्त किया गया। ● अगस्त, 1958 में वेंकटाचारी को कनाडा में भारत का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया। ● 16 जून, 1999 को उनका निधन हो गया। Source utkarsh Classes

तारकनाथ दास

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  तारकनाथ दास ❖ तारकनाथ दास का जन्म 15 जून, 1884 को बंगाल के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। ❖ कलकत्ता में अपनी कॉलेज शिक्षा के दौरान वे एक ब्रिटिश-विरोधी गुप्त संगठन से जुड़ गए। ❖ वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के उपरांत उन्होंने अपनी पढ़ाई त्याग दी और एक भिक्षुक छात्र के वेश में सम्पूर्ण भारतवर्ष में घूम-घूम कर क्रांतिकारी संदेश प्रसारित करने शुरू किए। ❖ जुलाई, 1906 में दास सिएटल पहुँचे तथा  कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में दाखिला लिया।  ❖ उन्होंने भारतीय प्रवासियों को संगठित करने के लिए काम किया। ❖ पुलिस के पीछे लग जाने पर युवा तारकनाथ वर्ष 1905 में साधु का वेश बनाकर ‘तारक ब्रह्मचारी’ के नाम से जापान चले गए। ❖ ब्रिटिश कोलंबिया की सिख आबादी के बीच अपनी राजनीतिक गतिविधियों को जारी रखते हुए, दास ने वर्ष 1908 में ब्रिटिश भारत सरकार की नीतियों की निंदा करने और प्रतिरोध को प्रोत्साहित करने के लिए 'फ्री हिंदुस्तान' नामक एक मासिक पत्रिका शुरू की। ❖ दास ने कनाडा में रहते हुए भारतीय अप्रवासियों के लिए एक स्कूल शुरू की तथा उन्हें अंग्रेजी और राष्ट्रवाद की शिक्षा दी। ❖ 'फ्री हिंदु

विश्व वन्य जीव दिवस 2023

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वन्य जीवों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 3 मार्च का दिन वन्यजीव दिवस के रूप में मनाया जाता है। वन्यजीवों से हमें भोजन तथा औषधियों के अलावा भी अनेक प्रकार के फायदे मिलते हैं। इसके अलावा वन्यजीव जलवायु को संतुलित रखने में भी सहायता करते हैं। दुनियाभर से लुप्त हो रहे वनस्पतियों और जंगली जीव-जंतुओं की प्रजातियों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस (world wildlife day) मनाया जाता है। 3 मार्च 2014 को पहली बार विश्व वन्यजीव दिवस मनाया गया था। दुनियाभर में जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। भारत में इस समय 900 से भी ज्यादा जीवों की प्रजातियां खतरे में हैं। समय रहते इस ओर ध्यान न दिया गया तो स्थिति और भी खतरनाक हो सकती है।  कैसे हुई विश्व वन्यजीव दिवस की शुरुआत? संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को, अपने 68वें अधिवेशन में वन्यजीवों की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं वनस्पति के लुप्तप्राय प्रजाति के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 3 मार्च को हर साल विश्व वन्यजीव दिवस मनाने की घोषणा की थी। वन्य जीवों

भगवान शिव का नामावली अष्टक

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 *नित्य पाठ के लिए भगवान शिव का नामावली अष्टक* 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸 संसार में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है, जो स्तुति से प्रसन्न न हो जाता हो। भगवान शिव आशुतोष (शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले) हैं। अत: यदि उनके विभिन्न नामों के साथ उनकी आराधना की जाए तो वे शीघ्र ही प्रसन्न होकर आराधक को सांसारिक पीड़ाओं से मुक्त कर मनवांछित वस्तु प्रदान कर देते हैं। भगवान शिव का नामावल्यष्टक (नामावली का अष्टक) श्रीशंकराचार्यजी द्वारा रचित एक ऐसा ही सुन्दर स्तोत्र है जिसके आठ पदों में भगवान शिव के विभिन्न नामों का गान कर सांसारिक दु:खों से रक्षा की प्रार्थना की गई है और नवें पद में उन्हें वंदन किया गया है। श्रद्धा भक्ति से किए गए इस स्तोत्र के नित्य पाठ से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर आराधक का कल्याण कर देते हैं। सांसारिक दु:खों से मुक्ति के लिए भगवान शिव का नामावली अष्टक हे चन्द्रचूड मदनान्तक शूलपाणे स्थाणो गिरीश गिरिजेश महेश शम्भो। भूतेश भीतभयसूदन मामनाथं संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।१।। हे चन्द्रचूड! (चन्द्रमा को सिर पर धारण करने वाले), हे मदनान्तक! (कामदेव को भस्म कर देने वाले), हे शूलपाणे! हे स्

उस्ताद असद अली ख़ाँ

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  उस्ताद असद अली ख़ाँ ❖  उस्ताद असद अली ख़ाँ का जन्म 1 दिसंबर, 1937 को राजस्थान के अलवर में हुआ था।  ❖  संगीत की प्रारंभिक शिक्षा रामपुर दरबारी के संगीतज्ञ अपने पिता उस्ताद सादिक अली ख़ाँ से ग्रहण की।  ❖  वे संगीत की प्राचीनतम शैली ध्रुपद की खण्डार बानी विधा के वर्तमान में एक मात्र संरक्षक हैं।  ❖  उस्ताद असद अली ख़ाँ ने ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, अफ़ग़ानिस्तान, इटली और कई अन्य यूरोपीय देशों सहित कई देशों में प्रदर्शन किया और संयुक्त राज्य अमेरिका में संगीत के पाठ्यक्रमों का आयोजन भी किया था। ❖  उस्ताद असद अली ख़ाँ ने ऑल इंडिया रेडियो में काम किया, संगीत और ललित कला में 17 साल के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में सितार सिखाया था। ❖  उन्हें वर्ष 2008 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण, वर्ष 1994 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा तानसेन सम्मान तथा वर्ष 1977 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान से विभूषित किया गया। ❖  14 जून, 2011 को नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इनका निधन हो गया। Source : utkarsh Classes 

भौतिक वैज्ञानिक कारियामणिक्कम श्रीनिवास कृष्णन

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  भौतिक वैज्ञानिक कारियामणिक्कम श्रीनिवास कृष्णन ❖  प्रख्यात भौतिक वैज्ञानिक कारियामणिक्कम श्रीनिवास कृष्णन का जन्म 4 दिसम्बर, 1898 को तमिलनाडु में हुआ।  ❖  के. एस. कृष्णन ने 'अमेरिकन कॉलेज', मदुरा; 'मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज' एवं 'यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ साइंस', कलकत्ता से शिक्षा प्राप्त की।  ❖  'मद्रास विश्वविद्यालय' ने इनको 'डी. एस. सी.' की उपाधि प्रदान की। ❖  'इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस' (कलकत्ता) के तत्वावधान में श्रीनिवास कृष्णन ने वर्ष 1923 तक अनुसंधान कार्य किया। ❖  वर्ष 1933 से 1942 तक वे 'महेंद्रलाल सरकार रिसर्च सेंटर' में प्रोफेसर तदुपरांत 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' में भौतिकी के प्रोफेसर रहे। ❖  वर्ष 1947 में 'राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला', दिल्ली के प्रथम संचालक बनने का गौरव इन्हें मिला। ❖  वर्ष 1940 में कारियामणिक्कम श्रीनिवास कृष्णन 'रॉयल सोसायटी' के सदस्य चुने गए। ❖  इसके बाद वर्ष 1946 में वे 'सर' की उपाधि से विभूषित किए गए।  ❖  स्वतंत्र भारत की सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण'