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अप्रैल, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

World Intellectual Property Day

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  विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस ● प्रतिवर्ष 26 अप्रैल को नवाचार एवं रचनात्मकता को बढ़ावा देने और इस संबंध में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस मनाया जाता है। ● लोगों के दिमागी उत्पाद से जुड़े अधिकार ही बौद्धिक संपदा अधिकार कहलाते हैं। इसमें साहित्यिक रचना, शोध, आविष्कार जैसी चीज़ें शामिल होती हैं।  ● वर्ष 2023 के लिए विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार दिवस की थीम - 'Women and IP: Accelerating Innovation and Creativity है।  ● बौद्धिक संपदा अधिकार एक निश्चित समयावधि और एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र के मद्देनजर दिए जाते हैं। ये अधिकार पाँच प्रकार के होते हैं- 1) कॉपीराइट, 2) पेटेन्ट, 3) ट्रेडमार्क, 4) औद्योगिक डिज़ाइन और 5) भौगोलिक संकेतक। ● विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 1967 में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) का गठन किया गया था, जिसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है। ● भारत वर्ष 1975 में WIPO का सदस्य बना था।  ● बौद्धिक संपदा के महत्त्व को पहली बार औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिए पेरिस अभिसमय (1883) और साहित्यिक तथा कलात्म

International Chernobyl Disaster Remembrance Day

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  अंतर्राष्ट्रीय चेर्नोबिल आपदा स्मृति दिवस ● प्रतिवर्ष 26 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परमाणु ऊर्जा के खतरों और वर्ष 1986 के चेर्नोबिल आपदा के परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय चेर्नोबिल आपदा स्मृति दिवस (International Chernobyl Disaster Remembrance Day) का आयोजन किया जाता है। ● 26 अप्रैल, 1986 को सोवियत यूक्रेन में चेर्नोबिल पॉवर स्टेशन (Chernobyl power station) पर एक परमाणु रिएक्टर में एक प्रयोग के दौरान हुए विस्फोट के कारण 31 लोगों की मौत हुई थी।  ● 26 अप्रैल‚ 1986 को पूर्व सोवियत संघ स्थित चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र में एक रासायनिक धमाका हुआ था‚ जिससे खतरनाक रेडियोएक्टिव तत्त्व वातावरण में फैल गया था। ● चेर्नोबिल दुर्घटना एक दोषपूर्ण रिएक्टर का परिणाम थी जिसे अपर्याप्त प्रशिक्षित कर्मियों के साथ संचालित किया जा रहा था। ● परिणामस्वरूप विस्फोट की वाष्प और आग से रिएक्टर के विनाश ने यूरोप के कई हिस्सों में रेडियोधर्मी सामग्री के जमाव के साथ, कम-से-कम 5% रेडियोधर्मी रिएक्टर सामग्री पर्यावरण में मिल गई थी। ● यह आपदा वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा के इतिहास

विश्व मलेरिया दिवस

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विश्व मलेरिया दिवस ● विश्व मलेरिया दिवस 25 अप्रैल को प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक वैश्विक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम है, जो मलेरिया से निपटने और उन्मूलन के लिए आवश्यक कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न स्थानीय और सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्राधिकरणों और नीति निर्माताओं के लिए एक वैश्विक आह्वान है।  ● विश्व मलेरिया दिवस पहली बार वर्ष 2008 में आयोजित किया गया था। इसे ‘अफ्रीका मलेरिया दिवस’ से विकसित किया गया था, यह वर्ष 2001 से विभिन्न अफ्रीकी देशों की सरकारों द्वारा मनाया जा रहा था। ● मलेरिया एक मच्छर जनित रक्त रोग (Mosquito Borne Blood Disease) है जो प्लाज़्मोडियम परजीवी (Plasmodium Parasites) के कारण होता है। यह मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।  ● इस परजीवी का प्रसार संक्रमित मादा एनाफिलीज़ मच्छरों (Female Anopheles Mosquitoes) के काटने से होता है। ● मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद परजीवी शुरू में यकृत कोशिकाओं के भीतर वृद्धि करते हैं, उसके बाद लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells- RBC) को नष्ट कर देते हैं, जिस

पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा

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        पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा ▪️पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा का जन्म 15 सितम्बर, 1863 को मेवाड़ और सिरोही राज्य की सीमा पर स्थित 'रोहिड़ा' नामक छोटे से गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ▪️उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई तथा कालांतर में 1877 ई. में मात्र 14 वर्ष की आयु में उच्च शिक्षा के लिए वे मुम्बई गए, जहाँ 1885 में 'एलफिंस्टन हाईस्कूल' से मेट्रिक्यूलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। ▪️1888 ई. में ओझा जी उदयपुर पहुँचे थे। कविराज श्यामलदास इनसे इतना प्रभावित हुए थे कि उन्होंने इन्हें अपने इतिहास कार्यालय में सहायक मंत्री बना दिया था, जिससे इन्हें मेवाड़ के भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक स्थानों को देखने और ऐतिहासिक सामग्री संकलित करने का अवसर मिला।  ▪️उन्हें उदयपुर के विक्टोरिया हॉल के पुस्तकालय एवं म्यूजियम का अध्यक्ष बनाया गया। वहाँ पुरातत्त्व विभाग के लिए इन्हें शिलालेखों, सिक्कों, मूर्तियों आदि ऐतिहासिक सामग्री संग्रह करने का अवसर मिला।  ▪️यहाँ रहते हुए ही ओझा जी ने ‘भारतीय प्राचीन लिपिमाला’ (1894 ई.) नामक ग्रंथ लिख कर पुरातत्त्व जगत में विशिष्ट ख्याति प्राप्त की

टीकाराम पालीवाल

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                  टीकाराम पालीवाल ● टीकाराम पालीवाल का जन्म 24 अप्रैल, 1909 को राजस्थान के दौसा जिले की मंडावर तहसील में हुआ था।  ● बचपन से ही उन्हें सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि थी और देश की स्वतंत्रता के बारे में चिंतित थे। ● वे एक स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे तथा उन्होंने लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।  ● उनका संबंध जयनारायण व्यास जैसे वरिष्ठ लोगों के साथ थे। ● जय नारायण राजस्थान के तीसरे मुख्यमंत्री तथा टीकाराम पालीवाल उनकी सरकार के सदस्य थे।  ● उन्होंने राजस्थान विधानसभा के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया। ● उन्होंने मेरठ कोर्ट में एक वकील के रूप में कार्य किया तथा कानूनी सुधार के क्षेत्र में कार्य किया।  ● वे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय थे तथा वर्ष 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल भी गए।  ● इस प्रकार के आयोजनों के दौरान ही वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संपर्क में आए और बाद में राजस्थान राज्य की राजनीति में एक प्रमुख नेता बन गए।  ● राज्य सरकार ने कुछ स्कूलों और अस्पतालों का नाम उनके नाम पर रखा है। ● टीकाराम पाली

रामधारी सिंह दिनकर

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                रामधारी सिंह दिनकर ● रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गाँव में 30 सितंबर, 1908 को हुआ।  ● वर्ष 1952 में दिनकर राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किए गए।  ● भारत सरकार ने इन्हें 'पद्मभूषण' अलंकरण से भी अलंकृत किया।  ● दिनकर जी को 'संस्कृति के चार अध्याय' पुस्तक पर ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।  ● अपनी काव्यकृति 'उर्वशी' के लिए इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ● हुँकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, उर्वशी, संस्कृति के चार अध्याय इत्यादि दिनकर की प्रमुख कृतियाँ हैं।  ● दिनकर ओज के कवि माने जाते हैं।  ● इनकी भाषा अत्यंत प्रवाहपूर्ण, ओजस्वी और सरल हैं। अपने देश और युग के सत्य के प्रति सजगता दिनकर की सबसे बड़ी विशेषता है।  ● दिनकर में विचार और संवेदना का सुंदर समन्वय दिखाई देता है। इनकी कुछ कृतियों में प्रेम और सौंदर्य का भी चित्रण है। ● 24 अप्रैल, 1974 को दिनकर जी स्वयं को अपनी कविताओं में हमारे बीच जीवित रखकर सदा के लिए अमर हो गए। Source. Utkarsh Class 

शबरी - एक दिव्य भक्त

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                    शबरी *शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी।* शबरी की उम्र *दस वर्ष* थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी। महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे। शबरी को समझाया *"पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो।"* अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- *कब आएंगे..?* महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे। वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे। *महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया।*  *आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए।*  ये उलट कैसे हुआ। *गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ???* महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका। महर्षि मतंग बोले-  *पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।* *अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ।* *उनका कौशल्या से विवाह होगा।* फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी।  *फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा।* फिर प्रतीक्षा.. *फिर उनका विवाह कैकई से होगा।* फिर प्रतीक्षा..  फिर वो *जन्म* लेंगे, फिर उनका *विवाह माता जानकी से होगा।* फिर

भाग्य

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                         भाग्य    सुनसान जंगल में एक लकड़हारे से पानी का लोटा पीकर प्रसन्न हुआ राजा कहने लगा― हे पानी पिलाने वाले ! किसी दिन मेरी राजधानी में अवश्य आना, मैं तुम्हें पुरस्कार दूँगा, लकड़हारे ने कहा―बहुत अच्छा। इस घटना को घटे पर्याप्त समय व्यतीत हो गया, अन्ततः लकड़हारा एक दिन चलता-फिरता राजधानी में जा पहुँचा और राजा के पास जाकर कहने लगा― मैं वही लकड़हारा हूँ, जिसने आपको पानी पिलाया था, राजा ने उसे देखा और अत्यन्त प्रसन्नता से अपने पास बिठाकर सोचने लगा कि- इस निर्धन का दुःख कैसे दूर करुँ ? अन्ततः उसने सोच-विचार के पश्चात् चन्दन का एक विशाल उद्यान(बाग) उसको सौंप दिया। लकड़हारा भी मन में प्रसन्न हो गया। चलो अच्छा हुआ। इस बाग के वृक्षों के कोयले खूब होंगे, जीवन कट जाएगा।         यह सोचकर लकड़हारा प्रतिदिन चन्दन काट-काटकर कोयले बनाने लगा और उन्हें बेचकर अपना पेट पालने लगा। थोड़े समय में ही चन्दन का सुन्दर बगीचा एक वीरान बन गया, जिसमें स्थान-स्थान पर कोयले के ढेर लगे थे। इसमें अब केवल कुछ ही वृक्ष रह गये थे, जो लकड़हारे के लिए छाया का काम देते थे। राजा को एक दिन यूँ ही विचार आया। चलो,

पाप ही समस्त दुःख का कारण नहीं है।

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पाप ही समस्त दुःख का कारण नहीं है। ***********************       दूसरे लोग अनीति और अत्याचार करके निर्दोष व्यक्ति को सता सकते हैं, शोषण उत्पीड़न और अन्याय का शिकार होकर कोई व्यक्ति दुःख पा सकता है।        अत्याचारी को भविष्य में उसका दण्ड मिलेगा, लेकिन इस समय तो निर्दोष को ही कष्ट सहना पड़ा। ऐसी घटनाओं में उस दुःख पाने वाले व्यक्ति के कर्मों का फल नहीं कहा जा सकता।        आमतौर से दुःख को नापसन्द किया जाता है। लोग समझते हैं कि पाप के फलस्वरुप अथवा ईश्वरीय कोप के कारण दुःख पाते हैं, परन्तु यह बात पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।          दुःखों का एक कारण पाप भी है, परन्तु यह ठीक नहीं कि समस्त दुःख पापों के कारण ही आते हैं। भ्रम के आधार पर कोई व्यक्ति अपने को बुरा समझे, आत्मग्लानि करें, अपने को नीच या निन्दित समझे, इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।        जब अपने ऊपर कोई विपत्ति आवे तो यह ही नहीं सोचना चाहिये कि हम पापी हैं, अभागे हैं, ईश्वर के कोप का भाजन हैं। सम्भव है वह कष्ट हमारे लिये किसी हित के लिए ही आया हो, उस कष्ट की तह में शायद कोई ऐसा लाभ दिया हो, जिसे हमारा अल्पज्ञ मस्तिष्क ठीक-ठीक रूप

सती सुलोचना की कथा

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सती सुलोचना की कथा सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री और लंका के राजा रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी थी। लक्ष्मण के साथ हुए एक भयंकर युद्ध में मेघनाद का वध हुआ। उसके कटे हुए शीश को भगवान श्रीराम के शिविर में लाया गया था।  अपने पती की मृत्यु का समाचार पाकर सुलोचना ने अपने ससुर रावण से राम के पास जाकर पति का शीश लाने की प्रार्थना की। किंतु रावण इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसने सुलोचना से कहा कि वह स्वयं राम के पास जाकर मेघनाद का शीश ले आये। क्योंकि राम पुरुषोत्तम हैं, इसलिए उनके पास जाने में तुम्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं करना चाहिए। रावण के महापराक्रमी पुत्र इन्द्रजीत (मेघनाद) का वध करने की प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मण जिस समय युद्ध भूमि में जाने के लिये प्रस्तुत हुए, तब राम उनसे कहते हैं- "लक्ष्मण, रण में जाकर तुम अपनी वीरता और रणकौशल से रावण-पुत्र मेघनाद का वध कर दोगे, इसमें मुझे कोई संदह नहीं है।  परंतु एक बात का विशेष ध्यान रखना कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे। क्योंकि मेघनाद एकनारी-व्रत का पालक है और उसकी पत्नी परम पतिव्रता है।  ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर

वैराग्य

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 ***** हाड मास की देह से वैराग्य   *****   महर्षि रमण की आयु तब 17 वर्ष की रही होगी एक बार वे  अपने काका के घर की छत पर सो रहे थे उन्हें महसूस हुआ कि उनकी मृत्यु की बेला आ रही है ।वह गंभीरतापूर्वक सोचने लगे यदि ऐसा हुआ तो उनका शरीर नष्ट हो जाएगा या उसके अंदर वास करने वाला मैं का नाश हो जाऐगा ?किंतु उसका उत्तर कैसे मिलेगा इसका अनुभव तो उन्हें था नहीं  आखिर वे उतान लेट गए और हाथ पैर फैला कर सोचने लगे बस अब मृत्यु ग्रस्त करने वाले है ।उनकी मृत्यु होने पर लोग उनके शरीर को शमशान में ले जाएंगे ,आग मे राख हो जाएगी उसके मन में फिर सवाल उठा  क्या मैं उस अवस्था में भी रहूंगा,या मै भी जल जाएगा उसका उत्तर उनकी अंतरात्मा ने दिया मृत्यु शरीर की मार सकती है ।मैं तो नहीं क्योंकि वह अविनाश है मृत्यु की सीमा से परे हैअमर है इसलिए हाड-मास वाली देह का मोह त्यागना ही चाहिए और उत्तर से उनके अंदर अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो गया हो गया।अविघा का अन्त हो आत्मपरिचय हो गया।इस स्थिति मे भला मृत्यु कैसे आ सकती थी ,उस पर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली थीं।और वे उठे  उसी समय अरुणाचल के मन्दिर की ओर निकल पडे,जहां उन्हो

कोमल कोठारी

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                  कोमल कोठारी ▪️कोमल कोठारी का जन्म 4 मार्च, 1929 को राजस्थान के जोधपुर में हुआ था। ▪️इनकी प्रारम्भिक शिक्षा उदयपुर में हुई थी। ▪️कोमल कोठारी ने वर्ष 1953 में अपने पुराने दोस्त विजयदान देथा, जो देश के अग्रणी कहानीकारों में गिने जाते हैं, उनके साथ मिलकर 'प्रेरणा' नामक पत्रिका निकालनी शुरू की, जिसका उद्देश्य हर महीने एक नया लोकगीत खोजकर उसे लिपिबद्ध करना था। ▪️विभिन्न प्रकार के काम करने के बाद कोमल कोठारी ने वर्ष 1958 में अन्ततः 'राजस्थान संगीत नाटक अकादमी' में कार्य करना शुरू किया। ▪️इन्हें 'भारत सरकार' द्वारा वर्ष 2004 में कला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था। ▪️ये कोमल कोठारी जी के परिश्रम का ही परिणाम था कि वर्ष 1963 में पहली बार मांगणियार कलाकारों का कोई दल राजधानी दिल्ली गया और वहाँ जाकर मंच पर अपनी प्रस्तुति दे सका। ▪️कोमल कोठारी द्वारा राजस्थान की लोक कलाओं, लोक संगीत एवं वाद्यों के संरक्षण, लुप्त हो रही कलाओं की खोज एवं उन्नयन तथा लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने हेतु वर्ष 1964 में बोरूं

चार्ल्स डार्विन

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                  चार्ल्स डार्विन ▪️ चार्ल्स डार्विन का जन्म 12 फरवरी, 1809 को इंग्लैंड के श्रोपशायर के श्रेव्स्बरी में हुआ था।  ▪️ चार्ल्स डार्विन की प्रारंभिक शिक्षा एक ईसाई मिशनरी स्कूल में हुई।  ▪️ 1825 ई. में सोलह वर्ष की आयु में एडिनबर्ग की मेडिकल यूनिवर्सिटी में दाखिल दिलवाया गया। ▪️ एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के बाद डार्विन को 1827 ई. में क्राइस्ट कॉलेज में दाखिल करवाया गया ताकि वे मेडिकल की आगे की पढ़ाई पूरी कर सकें। ▪️ बीगल पर विश्व भ्रमण हेतु अपनी समुद्री-यात्रा को वे अपने जीवन की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना मानते थे जिसने उनके व्यवसाय को सुनिश्चित किया। ▪️ समुद्री-यात्रा के बारे में उनके प्रकाशनों तथा उनके नमूने इस्तेमाल करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के कारण, उन्हें लंदन की वैज्ञानिक सोसायटी में प्रवेश पाने का अवसर प्राप्त हुआ। ▪️ अपने कैरियर के शुरुआत में डार्विन ने प्रजातियों के जीवाश्म सहित बर्नाकल (विशेष हंस) के अध्ययन में आठ वर्ष व्यतीत किए। ▪️ उन्होंने 1851 ई. तथा 1854 ई. में दो खंडों के जोड़ो में बर्नाकल के बारे में पहला सुनिश्चित वर्गीकरण विज्ञान का अध्ययन प्रस्तुत

विश्व यकृत दिवस

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                विश्व यकृत दिवस ▪️ यकृत (लीवर) के महत्त्व और उससे संबंधित रोगों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिवर्ष 19 अप्रैल को विश्व यकृत दिवस का आयोजन किया जाता है।  ▪️इस स्वास्थ्य जागरूकता दिवस पर आयोजित गतिविधियों को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और स्थानीय शासी समूहों के संघों के साथ आयोजित किया जाता है। ▪️विश्व यकृत दिवस लोगों को गंभीरता, शीघ्र पहचान और यकृत रोगों की रोकथाम के बारे में शिक्षित करने से संबंधित गतिविधियों पर केंद्रित है। ▪️मानव शरीर में दूसरा सबसे बड़ा और सबसे महत्त्वपूर्ण अंग होने के कारण यकृत कई कार्य करता है जिसमें चयापचय, पाचन, प्रतिरक्षा, विषाक्त पदार्थों का निस्पंदन और विटामिन, खनिज, ग्लूकोज आदि का भंडारण शामिल है, लेकिन इन तक सीमित नहीं है।  ▪️स्व-उपचार की अनूठी विशेषता, जहाँ यह 60 से 70% तक क्षतिग्रस्त होने के बाद पुन: विकसित या पुन: उत्पन्न हो सकता है, यकृत में किसी भी असामान्यता से गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएँ हो सकती हैं। ▪️वर्ष 2023 के लिए विश्व लीवर दिवस की थीम ‘सतर्क रहें, नियमित लीवर चेक-अप करें, फैटी लीवर किसी को भी प्रभावित कर सकता है

World Heritage Day

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              World Heritage Day ● Every year on April 18, 'International Day for Monuments and Sites' or 'World Heritage Day' is organized to create awareness for the protection of cultural-historical sites and heritage. ● The day aims to create awareness about the cultural-historical heritage among various communities. ● International Day for Monuments and Sites/World Heritage Day is being celebrated by various Circles/Museums/Branch Offices of Archaeological Survey of India (ASI) on 18th April, 2023. ● The theme of World Heritage Day for the year 2023 is 'HERITAGE CHANGES'. ● The International Council on Monuments and Sites (ICOMOS) established 'World Heritage Day' in the year 1982 and in the year 1983 it was approved by the 'United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization' (UNESCO). ● World Heritage Site refers to a place which has been listed by UNESCO because of its special cultural or physical importance.

विश्व विरासत दिवस

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              विश्व विरासत दिवस ● प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थलों और धरोहरों के संरक्षण हेतु जागरूकता पैदा करने के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल दिवस’ (International Day for Monuments and Sites) अथवा ‘विश्व धरोहर दिवस’ (World Heritage Day) का आयोजन किया जाता है। ● इस दिवस का उद्देश्य विभिन्न समुदायों के बीच सांस्कृतिक-ऐतिहासिक विरासत के बारे में जागरूकता पैदा करना है। ● स्मारकों और स्थलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस/विश्व विरासत दिवस 18 अप्रैल, 2023 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के विभिन्न सर्किलों/संग्रहालयों/शाखा कार्यालयों द्वारा मनाया जा रहा है। ● वर्ष 2023 के लिए विश्व धरोहर दिवस की थीम 'विरासत परिवर्तन' (HERITAGE CHANGES) है।  ● इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स एंड साइट्स (ICOMOS) ने वर्ष 1982 में ‘विश्व धरोहर दिवस’ की स्थापना की थी और वर्ष 1983 में इसे ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन' (UNESCO) की मंज़ूरी प्राप्त हुई थी। ● विश्व धरोहर/विरासत स्थल का आशय एक ऐसे स्थान से है, जिसे यूनेस्को द्वारा उ

अल्बर्ट आइंस्टीन

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            अल्बर्ट आइंस्टीन ● अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च, 1879 को जर्मनी के यहूदी परिवार में हुआ।  ● उनके पिता हरमन आइंस्टीन एक इंजीनियर और सेल्समेन थे, जबकि उनकी माता का नाम पोलिन आइंस्टीन था।  ● 1880 ई. में उनका परिवार म्यूनिख शहर चला गया।  ● 1895 ई. में आइंस्टीन ने 16 साल की उम्र में स्विस फ़ेडरल पॉलिटेक्निक, ज्यूरिख की एंट्रेंस परीक्षा दी, जो बाद में Edigenossische Technische Hochschule (ETH) के नाम से जानी जाती थी।  ● भौतिकी और गणित के विषय को छोड़कर बाकी दूसरे विषयों में वे पर्याप्त मार्क्स पाने में असफल हुए और अंत में पॉलिटेक्निक के प्रधानाध्यापक की सलाह पर आर्गोवियन कैनटोनल स्कूल, आरु, स्विट्ज़रलैंड चले गए।  ● प्रकाश की क्वांटम थ्योरी – आइंस्टीन की प्रकाश की क्वांटम थ्योरी में उन्होंने ऊर्जा की छोटी थैली की रचना की जिसे ‘फोटोन’ कहा जाता है। उनकी इस थ्योरी में उन्होंने कुछ धातुओं से इलेक्ट्रॉन्स के उत्सर्जन को समझाया। उन्होंने फोटो इलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट की रचना की। ● ब्रोव्नियन मूवमेंट – यह अल्बर्ट आइंस्टीन की सबसे बड़ी खोज थी, जहाँ उन्होंने परमाणु के निलंबन में जिगज़ैग मू

Albert Einstein

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                Albert Einstein ● Albert Einstein was born on March 14, 1879 in a German Jewish family. ● His father Hermann Einstein was an engineer and salesman, while his mother's name was Pauline Einstein. ● In 1880 AD, his family moved to the city of Munich. ● In 1895 AD, at the age of 16, Einstein took the entrance examination of the Swiss Federal Polytechnic, Zurich, later known as Eidgenössische Technische Hochschule (ETH). ● He failed to get enough marks in all other subjects except Physics and Mathematics and finally went to the Argovian Cantonal School, Aaru, Switzerland on the advice of the Principal of the Polytechnic. ● Quantum Theory of Light - In Einstein's quantum theory of light, he created a small bag of energy called 'photon'. In his theory, he explained the emission of electrons from some metals. He discovered the photo electric effect. ● Brownian Movement – This was one of the biggest discovery of Albert Einstein, where he observed zigzag mo

तात्या टोपे

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                      तात्या टोपे ● रामचंद्र पांडुरंग के नाम से विख्यात तात्या टोपे का जन्म वर्ष 1814 में महाराष्ट्र के नासिक जिले में हुआ था।  ● उनके पिता, पांडुरंग राव, मराठा पेशवा बाजी राव द्वितीय के दरबार में एक रईस थे।  ● टोपे पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहब से परिचित हो गए और दोनों घनिष्ठ मित्र बन गए।  ● वे अंग्रेजों के खिलाफ 1857 ई. के विद्रोह में भी सहयोगी थे। ● तात्या टोपे ने उपनाम 'टोपे' अपनाया जिसका अर्थ है - कमांडिंग ऑफिसर।  ● लड़ने के कौशल में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं होने के बावजूद, टोपे एक शानदार सेनानी और गुरिल्ला युद्ध की कला में निपुण थे।  ● 1857 ई. के विद्रोह में तात्या टोपे, झांसी से रानी लक्ष्मीबाई, बरेली से खान बहादुर खान, बिहार के जगदीशपुर से कुँवर सिंह ने, लखनऊ से बेगम हज़रत महल, इलाहाबाद से लियाक़त अली, फतेहपुर से अज़ीमुल्लाह खान और फैज़ाबाद से मौलवी अहमदुल्लाह ने क्रांति का नेतृत्व किया। ● उन्होंने कानपुर और फिर ग्वालियर में विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाई, ● उन्होंने 1857 ई. में उल्लेखनीय कुशलता से कानपुर पर अधिकार कर लिया था, हालाँकि, कानपुर क

राजस्थान पुलिस स्थापना दिवस

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        राजस्थान पुलिस स्थापना दिवस प्रत्येक वर्ष राजस्थान में राज्य पुलिस के समस्त विभागों द्वारा 16 अप्रैल को राजस्थान पुलिस स्थापना दिवस मनाया जाता है। 16 अप्रैल 1949 को सभी रियासतों के पुलिस बलों ने मिलकर राजस्थान पुलिस की स्थापना की थी। राजस्थान पुलिस का ध्येय : • "अपराधियोँ में डर, आमजन में विश्वास।” आदर्श वाक्य : “सेवार्थ कटिबद्धता” प्रतीक चिन्ह : विजय स्तम्भ। प्रथम पुलिस महानिरीक्षक : • श्री आर.बनर्जी। (इन्होंने पुलिस विनियमों में संयुक्त राज्य राजस्थान के लिए एक सामान्य पुलिस कोड की व्यवस्था की थी।) मुख्यालय : जयपुर । इतिहास : • 15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी के बाद से अखंड भारत की निर्माण प्रक्रिया के तहत राजस्थान राज्य का भी वर्तमान स्वरूप विभिन्न चरणों से गुजरता हुआ अस्तित्व में आया था। • 18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली वाले मत्स्य संघ की पहली शुरुआत के बाद धीरे-धीरे अन्य रियासतों ने भी एक राज्य में शामिल होने के लिए अपनी सहमति दी। • 31 मार्च, 1949 को भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ग्रेटर राजस्थान के गठन का स्वागत करते हुए इसका उद्घाटन

राजा मोरध्वज की कथा

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(((( राजा मोरध्वज की कथा )))) महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों द्वारा श्री कृष्ण के कहने पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया गया.  . अश्वमेघ यज्ञ के बाद घोड़ा छोड़ा जाता है और वह घोड़ा जहां तक जाता है वहां तक उस राज्य के राजा की दास्तां स्वीकार कर ली जाती है.  . घोड़े की रक्षा के लिए धनुर्धर अर्जुन को नियुक्त किया गया था.  . कोई भी राज्य का राजा उस अश्व को रोकने की कोशिश नहीं करता था क्योंकि अर्जुन ने पितामह भीष्म और महाबली कर्ण जैसे योद्धाओं को मृत्यु का ग्रास बनाया था. . घोड़ा निरंतर आगे बढ़ता जा रहा था. कई राज्यों को पार करने के बाद वह घोड़ा रतनपुर राज्य की सीमा तक जा पहुंचा.  . रतनपुर के राजा मोरध्वज (मयूर ध्वज) बड़े ही धर्मात्मा और श्री नारायण के परम भक्त थे.  . राजा मोरध्वज का पुत्र धीर ध्वज (ताम्रध्वज) था. धीरध्वज ने अल्प आयु में ही युद्ध कला में सर्व शिक्षा प्राप्त कर ली थी.  . वीर धीर ध्वज ने अश्वमेध का वह घोड़ा रोक लिया और घोड़े के रक्षक अर्जुन की प्रतीक्षा करने लगा.  . सेना सहित धनुर्धर अर्जुन वहां पहुंचे. और उस वीर बालक से कहा- “हे बालक” तुमने जिस घोड़े को रोका है वह च