वैराग्य

 ***** हाड मास की देह से वैराग्य  *****

  महर्षि रमण की आयु तब 17 वर्ष की रही होगी एक बार वे  अपने काका के घर की छत पर सो रहे थे उन्हें महसूस हुआ कि उनकी मृत्यु की बेला आ रही है ।वह गंभीरतापूर्वक सोचने लगे यदि ऐसा हुआ तो उनका शरीर नष्ट हो जाएगा या उसके अंदर वास करने वाला मैं का नाश हो जाऐगा ?किंतु उसका उत्तर कैसे मिलेगा इसका अनुभव तो उन्हें था नहीं 






आखिर वे उतान लेट गए और हाथ पैर फैला कर सोचने लगे बस अब मृत्यु ग्रस्त करने वाले है ।उनकी मृत्यु होने पर लोग उनके शरीर को शमशान में ले जाएंगे ,आग मे राख हो जाएगी उसके मन में फिर सवाल उठा  क्या मैं उस अवस्था में भी रहूंगा,या मै भी जल जाएगा उसका उत्तर उनकी अंतरात्मा ने दिया मृत्यु शरीर की मार सकती है ।मैं तो नहीं क्योंकि वह अविनाश है मृत्यु की सीमा से परे हैअमर है इसलिए हाड-मास वाली देह का मोह त्यागना ही चाहिए और उत्तर से उनके अंदर अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो गया हो गया।अविघा का अन्त हो आत्मपरिचय हो गया।इस स्थिति मे भला मृत्यु कैसे आ सकती थी ,उस पर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली थीं।और वे उठे  उसी समय अरुणाचल के मन्दिर की ओर निकल पडे,जहां उन्होंने घोर तपस्या की ओर फलस्वरूप पहले के रमण स्वामी और बाद मे मह्रर्षि रमण कहलाऐ ।।।।



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