सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू
'श्रम करते हैं हम
कि समुद्र हो तुम्हारी जागृति का क्षण
हो चुका जागरण
अब देखो, निकला दिन कितना उज्ज्वल।'
▪️सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुआ था।
▪️भारत कोकिला’ के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू ने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा पास की और अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए किंग्स कॉलेज लंदन और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गिर्टन कॉलेज में दाखिला लिया।
▪️सरोजिनी नायडू ने 19 साल की उम्र में जातिगत परंपरा की अवहेलना करते हुए पंडित गोविंद राजुलू नायडू से विवाह किया।
▪️स्कूल में रहते हुए ही उन्होंने फारसी नाटक महेर मुनीर लिखा और हैदराबाद के निज़ाम ने भी इसकी प्रशंसा की थी।
▪️उनका पहला कविता संग्रह ‘द गोल्डन थ्रेसहोल्ड’ वर्ष 1905 में जारी हुआ था।
▪️वर्ष 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद सरोजिनी नायडू भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गईं।
▪️उन्होंने वर्ष 1915 से वर्ष 1918 के बीच भारत में कई यात्राएँ की ;राष्ट्रवाद और सामाजिक कल्याण के लिए चर्चा की तथा लोगों को प्रेरित किया।
▪️भारत में फैले प्लेग महामारी के दौरान लोगों की सेवा करने के लिए भारत सरकार ने केसर-ए-हिंद की उपाधि दी थी जिसे उन्होंने जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद वापस कर दिया था।
▪️सरोजिनी नायडू भारत में हिंदू-मुसलमान एकता की प्रबल समर्थक थीं और उन्हें उनकी कविताओं के लिए ‘भारत की बुलबुल’ (Nightingale of India) कहा जाता है।
▪️वर्ष 1920 में सरोजिनी नायडू महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित सत्याग्रह आंदोलन में शामिल हुईं।
▪️उन्हें वर्ष 1930 के नमक मार्च में कई अन्य प्रसिद्ध नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ भाग लेने के लिए हिरासत में लिया गया था।
▪️भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुए प्रमुख नेताओं में वो भी शामिल थीं। उन्हें पुणे के आगा खाँ महल में रखा गया था। 10 महीने के बाद जेल से वे रिहा हुईं तथा फिर से राजनीति में सक्रिय हुईं।
▪️सरोजिनी नायडू प्रारंभ से आज़ादी के संघर्ष में सक्रिय रहीं थीं। उन्होंने धरसाना नमक सत्याग्रह के दौरान गाँधीजी व सभी अन्य नेताओं की गिरफ्तारी के बाद सत्याग्राहियों का नेतृत्व किया था।
▪️3 दिसंबर, 1940 को विनोबा भावे के नेतृत्व में हुए, व्यक्तिगत सत्याग्रह में हिस्सा लेने के कारण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उन्हें शीघ्र ही जेल से रिहा कर दिया गया।
▪️स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया तथा 2 मार्च, 1949 तक वे इस पद पर बनी रहीं एवं अपने कार्यकाल के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।
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