श्री राम स्तुति
जय श्री राम
प्रभु श्रीराम जी के प्रकट होते समय माँ कौशल्या द्वारा की गयी स्तुति भावार्थ सहित प्रस्तुत है !
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प्रभु श्री रामजी ने जन्म कैसे लिया इस बारे में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में बहुत ही सुन्दर निरूपण किया है, हम वही राम जन्म की कथा को आपको बतायेगें। तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड में लिखते है-
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी
अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा
*निज आयुध भुजचारी।*
*भूषन बनमाला नयन बिसाला*
*सोभासिंधु खरारी॥*
*भावार्थ :-* दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।
यहाँ पर ध्यान देने वाली बात है कि माँ कौसल्या जी के सामने चार भुजा धारण करके अस्त्र-शस्त्र लिए, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने भगवान प्रकट हुए। अर्थात भगवान माँ के पेट से तो नहीं पैदा हुए, यह बात स्पष्ट हो गयी। क्योंकि माँ के पेट से अस्त्र-शस्त्र दिव्य आभूषण और वनमाला पहने कोई भी बच्चा नहीं आता। आगे और स्पष्ट तुलसीदास जी लिखते है -
*कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी*
*केहि बिधि करौं अनंता।*
*माया गुन ग्यानातीत अमाना*
*बेद पुरान भनंता॥*
*करुना सुख सागर सब गुन आगर*
*जेहि गावहिं श्रुति संता।*
*सो मम हित लागी जन अनुरागी*
*भयउ प्रगट श्रीकंता॥*
*भावार्थ :-* दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी- हे अनंत! मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूँ। वेद और पुराण तुम को माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाण रहित (भगवान का निराकार स्वरूप) बतलाते हैं। श्रुतियाँ और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं, वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं।
यहाँ पर तुलसीदास जी लिखते है कि लक्ष्मीपति भगवान प्रकट हुए। इसका मतलब की विष्णु जी प्रकट हुए चार भुजा धारण करके अस्त्र-शस्त्र लिए, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने।
*ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया*
*रोम रोम प्रति बेद कहै।*
*मम उर सो बासी यह उपहासी*
*सुनत धीर मति थिर न रहै॥*
*उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना*
*चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।*
*कहि कथा सुहाई मातु बुझाई*
*जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥*
*भावार्थ :-* वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्माण्डों के समूह (भरे) हैं। वे तुम मेरे गर्भ में रहे- इस हँसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्कुराए। वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अतः उन्होंने (पूर्व जन्म की) सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का (वात्सल्य) प्रेम प्राप्त हो (भगवान के प्रति पुत्र भाव हो जाए)
यहाँ पर राम की माँ कौसल्या जी कहती है कि जिसके रोम-रोम में माया के ब्रह्माण्डों के समूह है वो मेरे गर्भ में है यह हँसी की बात है। फिर जब माँ को भगवान ने कहा कि माँ आपने पूर्व जन्म में वर मांगा था। तो मैं आपके पुत्र के रूप में प्रकट हो गया हूँ। परन्तु माँ कौसल्या जी कहती है कि मैंने तो आपको पुत्र रूप में वर माँगा था आप तो मेरे पिता के रूप में आ गये।
*माता पुनि बोली सो मति डोली*
*तजहु तात यह रूपा।*
*कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला*
*यह सुख परम अनूपा॥*
*सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना*
*होइ बालक सुरभूपा।*
*यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं*
*ते न परहिं भवकूपा॥*
*भावार्थ :-* माता की वह बुद्धि बदल गई, तब वह फिर बोली- हे तात! यह रूप छोड़कर अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, (मेरे लिए) यह सुख परम अनुपम होगा। (माता का) यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी सुजान भगवान ने बालक (रूप) होकर रोना शुरू कर दिया।
(तुलसीदासजी कहते हैं-) जो इस चरित्र का गान करते हैं, वे श्री हरि का पद पाते हैं और (फिर) संसार रूपी कूप में नहीं गिरते।
जय श्री सीताराम जी की
जय श्री राम
जवाब देंहटाएंBahut sundar
जवाब देंहटाएंVery good👍
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